Wednesday, December 2, 2009

LADY WITH BROWN EYES:

You & Your Eyes
are like "the rain" in the desert
Whenever I think about the thirst
They are "still water" with pleasure
I want to feel, I want to share
But I don't know, its truth or a mare
But whenever I looked for love and affection
It’s found always in their direction
No doubt you are beautiful, but they are more
Like the sunset on a endless shore
Just take care of these as they are divine
And surely I will love them till they are mine.

Wednesday, November 25, 2009

एक बरस गुजर गया

एक बरस गुजर गया और हमने क्या खोया क्या पाया ?
शब्दों की गुत्थम में उलझी आँधी और अंधेरे में चौकस एक काला साया.
में अभी-अभी वहाँ पर था जहाँ उस दिन लहू गिरा था एक खाकी वाले का,
जहाँ सो गया एक माँ का लाल , और जहाँ छूटा ठिकाना एक परिवार के निवाले का.
देखा तो ......
वहाँ आज भी एक छोटा सा दिया जल रहा था, कितनी भी तेज आँधी हो,
बन एक अनंत विचार निरंतर अंतर-मन में पल रहा है ,
वहाँ की मिट्टी आज भी एक मीठी सी सुगंध लिए लालिमा दिखा रही है,
उस खाकी वाले को याद कर जैसे पेड़ -पेड़ की एक, एक पत्ती मुस्कुरा रही है .

सुना वहाँ कयी माता हैं जो रोज आती है , कई पत्नी हैं , कयी बेटी है जो अश्रु बहाती हैं,
पर कभी भी वहाँ का उल्लास कम नही होता है, हर पल गर्व बढ़ता है जब उन शहीदों के लिए कोई रोता है.
आज भी उनके शोर्य की गाथा यहाँ दिन- रात गायी जाती है , सम्मान से देखती उन्हे लाखों आँखें ,
जगह- जगह उनके उदाहरण की मिसालें पायीं जाती है.

और इन सब से दूर सतर्क निगाहें, हर समय तत्पर , चौकस नज़र लिए कुछ लोग खड़े देखते रहते हैं ,
पता किया तो भान हुआ की इन्हे यहाँ का नया खाकी वाला कहते हैं ......

पुलिस के वीर जवानो के नाम "उस रात हम सो पाए क्यों की आप जाग रहे थे" |

Tuesday, November 24, 2009

तुतला विनय

कल हमारे संकू भैया खुश खुश दाँत बनवा आए,
और आज बैठे हैं गाल पकड़े, रुमाल से मुँह दबाए |
पूछ-ताछ करने पर भी कुछ नही बोल रहे हैं,
कितना भी बात कर लो पर हूँ,हूँ , हाँ हाँ के आगे नही डोल रहे हैं |

अब सारा घर घूमे परेशान , गोल गोल सोचे , करे कोई उपाय,
की भैया छोटा सा दाँत बनवा के ही कहे बंद हो गयी इनकी काएँ काएँ |
सब घर बोले झाड़ा डालो , चप्पल मारो या मिर्ची दो खिलाय,
अगर कोई भूत बाधा, जिन्न होवे , तो दूं दबाए भग जाए |

संकू भैया , सुन सब बाबरी कथा , समाधान , झट से भए खड़े ,
और ज़ोर की एक जोरदार आवाज़ :
अले कामीनो बंद कलो अपने फालतू उपाय औल बंद कलो ले पुलानी परिपाटी,
में तो चुप इल्लीए बैठा हूँ क्यों ती कल मैने अपनी सुन्न जीभ है काटी |

कभी कभी एक छोटी सी मूर्खता भी आपको तुतला कर सकता है विनय :(

Tuesday, November 10, 2009

डरी-सहमी सी हिन्दी

प्रिय मित्रों,
कल जो भी कुछ महाराष्ट्र विधानसभा में हुआ,उसे देखने के बाद मुझे दुख है कि में अब एक ऐसे हिन्दुस्तान का नागरिक हूँ जहाँ ओछी राजनीती की दुकान चलाने के लिए हमारे नेतागण अपनी मूल जड़ों , सिद्धांतों को ताक पर रख मर्यादा की सभी सीमाओं को लाँघने को तत्पर हैं |मैं नही जानता की कौन ग़लत है या सही और में ढिंढोरा नही पीटता की क्या हुआ और क्यों हुआ,बस मुझे चिंता है मेरी (हिन्दी) की जिसका चीरहारण को अब कोई बाहरी दुशासन नही, परंतु उसके अपने बेटे ही तत्पर
है |

डरी-सहमी हिन्दी

में डरी-सहमी सी हिन्दी,आज एकटक देखती हूँ अपने पुत्रों को लड़ते-झगड़ते हुए.
बँटते-बाँटते हुए मेरे नाम पर,राजनीती की धार पर मेरी राख रगड़ते हुए.

भूल चुके हैं यह ,कि में ही वह पहला स्वर थी जो इनके मुख पर आया था,
और भूल चुके हैं यह भी,कि में ही वो भाषा थी, जिसमे पहली बार माता को बुलाया था.

आज के इस युग में,हरपल सिसकती में याद करती हूँ अपने उन वीर पुत्रो,जिन्होने मुझे
साथ ले अँग्रेज़ों से लोहा लिया था,उन वीर मराठा, बुन्देलो को, जिन्होने साथ-साथ मिल जय हिंद का स्वप्न दिया था.

आज में स्वयं को अपमानित,शोक में डूबा हुआ पाती हूँ,जब देखती हूँ कि में बिना बात ही
अचानक अपने पुत्रो में विभाजन का विषय बन जाती हूँ....

में डरी-सहमी सी हिन्दी..एकटक. देखती हूँ अपने पुत्रों को...

कभी इस भारत में एक युग था जब मेरे स्वर से सब देवी देवताओं को प्रसन्न किया करते थे.
एक युग था जब सड़कों पर मेरी ओट में लिखे इन्कलावी गीतों के गर्जन से,दुश्मन आह भरते थे.

पर आज मेरे अपने पुत्र ही मुझे बाँटने पर तुले हुए हैं,भूल चुके हैं उस इतिहास को,घटनाओं को
जिसके सिद्धांतों पर हम सब एक दूजे में घुले हुए हैं.

मुझे कुछ नही चाहिए तुमसे पुत्रों बस एक माँ की यही अंतिम प्रार्थना है .....
अब बंद करो मेरा तमाशा बनाना क्यों की जो लहू बहेगा वह मेरी ही वर्षों की साधना है....

में डरी-सहमी सी हिन्दी..एकटक. देखती हूँ अपने पुत्रों को......

Monday, October 26, 2009

I want to be a kid of that world

I want to be a kid of that world

Where I can rock on the swing of my courtyard, without any fear.
Where I can rove freely, holding my Grandpa’s hand, far or near.

Where I can shake hands to the little hands, offered from the opposite side of the wall.
And where I can worship all the religions, Gods and Goddesses, without the fear to stall.

I want to be a kid of that world

Where each elder would love me and would kiss my forehead with profound care.
Where, there should be no sight of blood to see, only blue and green to stare.

Where, no sounds may exist of blasts and Mig-roares, but only the sound of the silent waves touching endless shores.

I want to be a kid of that world

Where Different maps, Different Languages can have the common Agenda of love.
Where Humans can be more important to anything and can act as the policy’s hub.

Where each dark-fair could share the same cup of the tea without a single thought in mind.
Where every energy and intelligence should work to answer only one question,
How to bind?

I have seen this dream with you My Friend, and I know where too, this exists Twenty-Four by seven,
This is in the glimmer of the numerous eyes of ours, which are really seeing the future and seeing this heaven.

Sunday, September 27, 2009

स्वाभिमान निहित मृत्यु

बारह-तीस की कल्याण जाने वाली लोकल आज प्लॅटफॉर्म नंबर तीन की जगह प्लॅटफॉर्म नंबर पाँच से जाएगी ,उद्घोषक बार -बार माइक से घोषणा कर रहा था . आज प्लटफार्म पर सामान्य से ज़्यादा भीड़ थी पर इन सब से अप्रभावित रमाकांत एक कुर्सी पर गुमसुम सा बैठा शून्य में ताक रहा था. आज एक ही दिन में उसकी दुनिया कितनी बदल गयी थी,सुबह जब वह घर से निकला था तब उसा नही पता था कि शाम तक उसे ऐसे खबर मिलेगी जो उसा हिला कर रख देगी.

बैठे-बैठे वह अपने बीते समय को याद करने लगा , जब पहली बार वो गावों से निकला था , मिलिट्री में भरती होने के लिए , कितना खुश था वो , उन दिनों सेना में भरती होने को बहुत गर्व से देखा जाता था और रमाकांत ने पहली बार में ही प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी,उसके बाद करीब 3 महीने की ट्रेनिंग के बाद उसे अपनी पहली पोस्टिंग मिली,अगरतला मैं ,चारों तरफ जंगलों से घिरा वो इलाक़ा अगले 4 साल तक उन लोगों का घर बन गया था जब तक की उन्हें राजस्थान आने को नही कहा गया.

राजस्थान में पाकिस्तान से घमासान लड़ाई छिड़ी हुई थी और रमाकांत की यूनिट को तुरंत वहाँ पहुँचना पड़ा,उसे याद आ रहा था
कैसे लगातार 24 घंटे तक चलने के बाद उनकी यूनिट ने वहाँ मोर्चा संभाला था और उसने अपने कंधे पर गोली खाकार अपने ऐक मेजर की जान बचाई थी,पर उस चोट के परिणाम से रमाकांत को दो स्वाद एक साथ मिले थे.उसे बीरता चक्र मिला और साथ में फौज से रिटाइर कर दिया गया.

इसके बाद वापिस गावों में कुछ दिनों तक वहाँ रहने के बाद उसका मन उब गया और एक दिन उसने ,मुंबई आने का फ़ैसला लिया, उसके मन में अब अपना व्यापार करने की इक्छा थी,रमाकांत सन 80 में मुंबई आ गया और उसने यहाँ आकर कुछ लड़कों को भरती कर के एक छोटी सी सिक्यूरिटी सर्वीसज़ की कंपनी शुरू की , फौज की जानकारी यहाँ उसके बहुत काम आई और उसकी कंपनी चल निकली.

अब रमाकांत एक जाना हुआ नाम बन चुका था , मुंबई के सब बड़े लोगों की जान की सुरक्षा का ठेका उसकी कंपनी को ही मिलता था.रमाकांत के इस बीच कयी लड़कियों से संबंध बने पर कभी भी वह अपने रिश्ते को शादी तक नही ले जा पाया.परंतु वो उसकी जिंदगी के स्वर्णिम दिन थे रमाकांत के अंदर का फ़ौजी हमेशा जिंदा रहा,उसने अपनी कंपनी के साथ
ही एक स्वयं सेवी संस्था की शुरूवात भी की, जो फ़ौजी परिवारों की विधवाओं की मदद करती थी.

पर ये सब बहुत समय तक नही चल सका , 90 के दशक मैं एक नेता का कत्ल हो गया जिसकी रक्षा की ज़िम्मेदारी
रमाकांत की कंपनी के उपर थी और बाद मे यह भी पता चला की रमाकांत के यहाँ के यहाँ काम करने वालों का उसमे हाथ
था, इससे कंपनी को बहुत नुकसान हुआ और जितनी तेज़ी से वो उपर आए थे उतनी तेज़ी से ही नीचे जाने लगे.

पर रमाकांत को इन सब से बहुत ज़्यादा फ़र्क नही पड़ा , वो गावों का लड़का था और भले ही वो अब शहर का अधेड़ हो
चुका था पर उसके अंदर वही गावों की ईमानदारी और सादगी ज़िंदा थी.उसने अपनी कंपनी को बेच दिया और स्वयम् सेवी संस्थान की बाग डोर भी अपने एक मित्र के हाथ मे दे दि.हाँ वो स्वयं सेवा-भाव से वहाँ काम करने में लगा लगा रहा और उसे जानने वाले आज भी उसका मान करते थे.


कल ही वो 55 बरस का हुआ था और उसके बहुत सारे सेना और व्यापार के दोस्तों ने मिलकर उसे एक सर्प्राइज़ पार्टी दी थी. कल उन सब ने बैठ कर अपने पुराने दिनों को याद किया था , 72 की लड़ाई के दीनों को...रमाकांत की...बहादुरी ...मेडल...गावों....अगरतला....सब....क़िस्सों को......कितना बहादुर था रमाकांत ......उसने जिंदगी की सभी मुश्किलों का सामना डॅट के किया था...

सोचते-सोचते रमाकांत रोमांचित हो गया... उसके सामने सारी गाड़ियाँ .....आ जा रही थी....छत्रपती शिवाजी टर्मिनस...अपनी पूरी काबिलियत से काम कर रहा था...

तभी उसकी नज़र अपने हाथ में लगे कागज पर गयी...टाटा मेमोरियल कॅन्सर हॉस्पिटल...

रमाकांत को अभी कुछ देर पहले ही पता चला था की उसे लास्ट स्टेज का ब्लड कॅन्सर है और अब उसके पास सिर्फ़ 2-3महीने ही रह गये थे...उसकी आँखे...डब-डबा आईं...इसलिए नही कि उसे मरने से डर लग रहा था परंतु ..इसलिए कि...उसके जीवन के कथा सार का अंत किसी हॉस्पिटल के बेड पर खून की उल्टियाँ करते हुए होना लिखा था...वो मन ही मन भगवान से कहने लगा...की क्या मुझ फ़ौजी ...उधमी...का यही अंत लिखा है आपने.....में तो सिर्फ़ एक स्वाभिमान निहित मृत्यु चाहता था....नाकि ऐसे गुमनाम किसी हॉस्पिटल के बेड पर....

वह अभी अपने ख़यालों मे ही था की अचानक,स्टेशन का द्रश्य बदल गया, लोग इधर-उधर भाग रहे थे और चारों तरफ खून के छींटे उड़ रहे थे...बीच - बीच में गोलियों की ताड़-ताड़ सुनाई दे रही थे...एक पल के लिए तो रमाकांत को समझ मे ही नही आया की हुआ क्या है पर तभी उसके फ़ौजी दिमाग़ ने उसे उत्तर दे दिया....स्टेशन पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया था....

रमाकांत , एक दीवार की ओट लेकर खड़ा हो गया , गोलियाँ अब भी चल रही थी तभी उसकी नज़र सामने के प्लॅटफॉर्म
पर पड़ी,वहाँ एक छोटी बच्ची एक निर्जीव-माँ के पास बिलख रही थी, रमाकांत जनता था की उसे क्या करना है...उसने ...
इधर-उधर चौकस निगाहों से देखा....फिर एक बार अपने....हाथ मे लगे कागज को देख कर मुस्कुराया....और सीधे....बच्ची कीतरफ...दौड़ लगा ..दी...

अगले दिन के अख़बार आतंकी हमले की खबरों से भरे पड़े थे और एक कोने में फोटो के साथ खबर थी...की पचपन साल के
एक रिटायर्ड फ़ौजी ने अपनी जान देकार बचाई ...बच्ची की जान....सारा देश उसे एक हीरो की तरह देख रहा था.

Thursday, August 20, 2009

English Translation of "Mali Ka Beta"

That summer, temperature was at its top; it was appearing that sun wants to gulp down the whole earth with its heat. Even in these extreme conditions, Chintu and his baba were working continuously to water the plants of our garden. Their clothes were completely wet because of swatting. It looked like there body had also become a fountain to support their work. I was watching them through the window of my air-conditioned room. Mom had told me that Nirmal kaka’s daughter was going to get married soon therefore he wants to make more and more money by working in double shifts and for the same reason, he brings Chintu with him. We had not passed much time in this colony, Nirmal kaka used to work in our neighbor Sharma’s house from last many years. Sharma’s were the one who send Nirmal Kaka to our place. Once while chatting with my parents Kaka told that he had not taken any salary from Sharma’s, from years he was saving his salary there so he could utilize the whole money in his daughters marriage. Now scorching was at its peat and those ghghjg hands kept on doing their work continuously.Today ten days have passed, Nirmal kaka has not been seen anywhere. I have not seen him coming in Sharma’s house. Because of the curiosity when I asked mom about him, she told me that four-five days back he died of lo and Chintu is in jail now. Actually that servant’s son had crossed his boundaries, when Sharmaji denied of having an money of Nirmal Kaka, He picked up a stone and …….

English Translation of "Vaishya Ki Beti"

Huge crowd was gathered around the railway track, somebody was cursing kalyug, and somebody was declaring this as end of humanity. How, a mother can be so cruel that she would leave her infant daughter to die like this, Thank God that the moving bag caught the sight of a sweeper and life of this small angel was saved. She was looking like a small doll, her small hands, tiny fingers and sweet pink face, certainly became a center of attraction. Every one was willing to take her in their arms and for a chance to cuddle her once. It was looking like whole world wants to pour their love on her.ParasharJi was a well-known Hindu idol of that locality, His intelligence and thoughtfulness was undoubtedly accepted in nearby areas but there was only one calamity of his life, even after years of marriage, he was not having any kids. When ParasharJi came to know about the baby girl, He also came to see her and the face of that little doll appeared to him as a godsend for his year’s old wish. However, before his arrival, A Muslim couple had also made their mind to adopt the little angel. Now this was a question of stature, where some time ago the girl was an orphan, now a number of prospects were debating high to adopt her. Discussion kept on going, Crowd too, was divided in to two groups. Some people were busy in describing ParasharJi as a responsible and correct prospect while some others in advocating for the Muslim couple; it appeared as if everyone was willing to be an active participant in deciding her future.In between, someone informed police and within no time police and following those, media too arrived. After half-n hour each house of the country was busy in watching her, Different – Different News channels named her according to there reporting, Anamika, Pari etc. Now there were two podiums around the railway track. At one side, In Parasharji’s support a local leader was giving a speech, on the other side , A Maulana Sahab was busy in doing a meeting to show support to Muslim couple’s claim and far away from all of this nuisance that small life was lying in a perambulator, waiting for her destiny to get decided. Landscape after two days was quite shocking, Podiums were taken back, and all media was gone back to their respective offices. Parasharji and Muslim couple were also back to their homes. When tried to know the reason, came to know that some one had identified the girl with the help of a locket in her collar. She was a daughter of a prostitute, who committed suicide after throwing her on the railway tracks. Knowing this truth everyone slipped from there one by one and at last, when no one was left to claim her, Police admitted her to a government orphanage home.

Friday, August 14, 2009

हे अमिताभ, तुम एक स्वतंत्र ओज विचार हो

प्रिय अमिताभ,
उम्मीद है कि आप स्वास्थ लाभ ले रहे होंगे , आप का जीवन बहुतों के लिए जिजीविटता की एक
मिसाल है और आशा है की आप शीघ्र हीअपने नाम के अनुरूप बीमार -शरीर पर भी अपनी श्रेष्ठता साबित करेंगे , आपने औरों के लए बहुत कुछ लिखा और कहा है ये एक छोटा साप्रयास आपके लिए मेरी ओर से है : -

हे अमिताभ, तुम एक स्वतंत्र ओज विचार हो ,
तुम ही स्वर हो इंक़लाब का,तुम ही रति की धार हो,
मित्र तुम्हे देख कर,आज लाखों पथ देख रहे,
इस अग्निपथ पर पथ प्रदर्शक , तुम झंझावती नाव की पतवार हो,
हे अमिताभ, तुम एक स्वतंत्र ओज विचार हो !

तुम हो आग्नेय रथ सारथी, पुत्र के ,
परिवार के लिए सशक्त ढाल साकार हो ,
छू नही सकता तुम्हे दुस्साहस कोई,
तुम समस्त दुस्साहासों , दुर्जनो से पार हो ,
हे अमिताभ, तुम एक स्वतंत्र ओज विचार हो !

मित्र कौन कहता कि व्यक्ति व्रद्ध होता ,
तुम जीवन पर्यंत , मूर्त यौवन साकार हो ,
शीघ्र - अति शीघ्र पुनः सुस्सजित हो स्वस्थ होकर ,
क्यों की तुम्ही कोटियों के ह्रदय सुशोभित प्यार हो,
हे अमिताभ, तुम एक स्वतंत्र ओज विचार हो !

आपके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ !



Thursday, August 13, 2009

My Creation from 1993 (टीचर)

आज मुझे अचानक एक सनक सूझी की मैनै सबसे पहले क्या लिखा था , दो बातें याद आईं सेकेंड क्लास मैं साथ में एक लड़की पढ़ती थी "प्रियंका " उसे प्रेमपत्र लिखा था (बाद में क्लास टीचर से पिटाई भी हुई थी) और दूसरी थर्ड क्लास में ऐक कविता लिखी थी , "अपनी टीचर के लिए" , अब प्रियंका के प्रेम पत्र के बारे में तो याद नही हाँ कविता थोड़ी याद है चलो उसे लिखते हैं आप सभी लोगों के लिए , आख़िर मेरी पहली रचना थी भाई !

टीचर

टीचर प्यारी - टीचर प्यारी,
हम बच्चों को पढ़ाती है .
दुनिया क्या है ,
कैसे जीना,वही हमें समझाती हैं.

कलियुग के इस अंधकार मे,
जलती लौ वो बन जाती है.
खुद आग की गर्मी सहकर,
हमें ज्ञान का प्रकाश दिखाती है !

टीचर प्यारी - टीचर प्यारी,
हम बच्चों को पढ़ाती है.

विनय कुमार गुप्ता ( थर्ड बी "आर्मी स्कूल ")

Friday, April 17, 2009

Gulal Ki Bateen Jo Mujhe Choo Gayeen .....

दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

लेकिन दुर्योधन
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की दे न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।

सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,

मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है।
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां
देखते कि मुल्क सारा यूँ टशन में थ्रिल में है

आज का लौंडा तो कहता हम तो बिस्मिल थक गए
अपनी आज़ादी तो भैया लौंडिया के दिल में है

आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है

हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्डी भी सिलती इंग्लिसों की मिल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

मुल्क़ ने हर शख़्स को जो काम था सौंपा
उस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी

बनता था तैरने में उस्ताद शहर का
कर गोमती को पार तेरी माँ का ___

this was an old one:
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि तू हिमालय पे जा पहुँचे
और ख़ुदा ख़ुद तुझसे ये पूछे, अबे ए लैकट, उतरेगा कैसे

another:
नाख़ुदा को गर्दिश-ए-तूफ़ाँ से डरना चाहिए
मेरा क्या मैं नाख़ुदा की नाक मै घुस जाऊगा
ultimate one:
इस मुल्क ने हर शख्स को जो काम था सौंपा| उस शख्स ने उस काम कि माचिस जला के छोड़ दी |

Monday, March 23, 2009

वोट डालो भईया, वोट डालो

वोट डालो भईया, वोट डालो !
लोकतंत्र के राज में परिवर्तन की चोट डालो ,
चिल्लाओ मत अगर कोई नेता बात नही सुनता है ,
अब तुम्हारा समय है ,दिखा दो कि कौन उन्हे चुनता है !

निकल जाओ घरो से बाहर , और दिखा दो संघठन की ताक़त एक बार,
ख़त्म कर दो इस किस्से को यहीं , ताकि भविष्य में ना हो और संहार ,
अपने बच्चों के मासूम चेहरों को देखो और कसम खाओ कि उन्हे सुरक्षित भारत देना है ,
स्कूल , बीमा सब अच्छा चुना , अब समय है जब अच्छा नेता चुनकर देना है |

नही सहो अब चिड़ियाघर सी संसद , संविधान के रक्षक भिजवाने को वोट डालो ,
संसद में नोट की ताक़त दिखाने वालों को वोट की ताक़त दिखाने को वोट डालो ,
अख़बारों की सुर्खियाँ पढ़ , चर्चा कर, मत परेशान होना इस बार,
अभी ताक़त तुम्हारी उंगली में है खुद ही कर दो सुर्खियाँ तैयार ,
अरे कुछ मिनटों की बात है और सालों के भविष्य का सवाल ,
इस बार सवाल की राह में खड़ी हर प्राथमिकता पर ओट डालो ,
वोट डालो भईया, वोट डालो |

Tuesday, March 17, 2009

Remix ( I Love my Job )

Yeh Code Pighla ke Delivery De Doon
Java,.Net mai Aaag Laga Doon
Smoking Smoking Nikdoon Re Dhooan

Pocket mai jalti hai rai chand dolloron in Arthi
Arrey What To Tell You Darling Kya Hua

Arrey Sapne Dekhe Onsite Ke
Par Sab Mitti Mein Mil Jaen
Chakkar Laga Aye Saare Chamchai,
Par Kabhi Humara Number Hi Naa Aye

Abb Akhon pai pad gaye kaale gadde,
Shakal sai lagte Beemaar.

Tauba IT kaa Jalwa,Tauba IT Managers Kaa Pyaar
OutSourcing Kaa Professional Attyachaar !

Tauba IT kaa Jalwa,Tauba IT Managers Kaa Pyaar
OutSourcing Kaa Professional Attyachaar !

Jao Jao Oh Manager, Oh Manager Ohh!

Tauba IT kaa Jalwa,Tauba IT Managers Kaa Pyaar
OutSourcing Kaa Professional Attyachaar !

Ho Gayi Engineering Kai Baad, Tragedy Tragedy
Lut Gai Mast jindagi,Abb Din Bhar Code Mai Sir Khapai

Ho Gayi Engineering Kai Baad, Tragedy Tragedy
Lut Gai Mast jindagi,Abb Din Bhar Code Mai Sir Khapai

Bol Bol , Why Did you hire Me
Now,Zindagi Bhi Lele Yaar Kill Me

Bol Bol , Why Did you hire Me Whore
Bol Bol , Why Did you hire Me
Now,Zindagi Bhi Lele Yaar Kill Me


Tauba IT kaa Jalwa,Tauba IT Managers Kaa Pyaar
OutSourcing Kaa Professional Attyachaar !

Tauba IT kaa Jalwa,Tauba IT Managers Kaa Pyaar
OutSourcing Kaa Professional Attyachaar !

Monday, March 16, 2009

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
तुम एम. ए. फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हुआ मैट्रिक फ़ेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
तुम फौजी अफ़्सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ ।
तुम रबडी खीर मलाई हो, मैं सत्तू सपरेटा हूँ ।
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ ।
तुम नयी मारूती लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेटा हूँ ।
इस कदर अगर हम छुप-छुप कर, आपस मे प्रेम बढायेंगे ।
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जायेंगे ।
सब हड्डी पसली तोड मुझे, भिजवा देंगे वो जेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये ।
तुम दीवली क बोनस हो, मैं भूखों की हडताल प्रिये ।
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्मुनिअम का थाल प्रिये ।
तुम चिकेन-सूप बिरयानी हो, मैन कंकड वाली दाल प्रिये ।
तुम हिरन-चौकडी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये ।
तुम चन्दन-वन की लकडी हो, मैं हूँ बबूल की चाल प्रिये ।
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मार मुझे गुलेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
मैं शनि-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो ।
मैं तन-से मन-से कांशी राम, तुम महा चन्चला माया हो ।
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ ।
तुम राज घाट का शान्ति मार्च, मैं हिन्दू-मुस्लिम दन्गा हूँ ।
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की ।
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवन्ता की ।
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
तुम नयी विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ ।
तुम ए. के.-४७ जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ ।
तुम चतुर राबडी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ ।
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिडियाघर का भालू हूँ ।
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा खाली हूँ ।
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ ।
कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देन तुम बेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो ।
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोतल हो ।
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कॄषि-दर्शन की झाडी हूँ ।
तुम विश्व-सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाडी हूँ ।
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला हूँ चोंगा ।
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंघा ।
दस मन्ज़िल से गिर जाउँगा, मत आगे मुझे ढकेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
तुम सत्ता की महरानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ ।
तुम हो ममता-जयललिता सी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ ।
तुम तेन्दुलकर का शतक प्रिये, मैं फ़ॉलो-ऑन की पारी हूँ ।
तुम गेट्ज़, मटीज़, कोरोला हो, मैं लेलैन्ड की लॉरी हूँ ।
मुझको रेफ़री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।
मैं सोच रहा कि रहे हैं कब से, श्रोता मुझको झेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।

By Pradeep !

Monday, February 16, 2009

खुशी की तलाश

शाम के धुँधलके में चलते - चलते , मेरे दिल में एक ख्याल आया |
सालों हो गये सफ़र शुरू किए हुए , शायद मै खुशी की तलाश मै बहुत दूर निकल आया |
मै आज भी अनवरत यात्रा कर रहा हूँ , पल-पल विचारों के ज्ञान से अपनी गागर भर रहा हूँ ,
पर क्यों मै खुश नही हो पाता ,क्यों कुछ भी कभी मेरे मन को नही भाता ?

जवाब जानने को बैठा मै सोच ही रहा था की अचानक एक हाथ ने मुझे छुआ,
वो एक भिखारी था जो खाने को दस रुपये माँग रहा था ,पूरी आशा और खुशी से मुझे ताक रहा था |
उसके चेहरे का उल्लास देख मै समझ ना पाया, की क्या ये खुश है ,या खुशी दिखा रहा है |
मन सम्भल न पाया तो मैने उससे उसकी खुशी का राज पूछ ही लिया ,
वो बोला बाबूजी मै खुश हूँ क्यों की आप के पास पैसा है , अब मेरा काम चल जाएगा,
ये भिखारी आज तो कम से कम भर पेट खाना खाएगा |

अब मेरी समझ मै आ गया था की फ़र्क सिर्फ़ सोच का ही है ,
में खुश नही रहता क्यों की मेरे पास होटेल मै खाने के पैसे नही है
और ये खुश है की इसके पास सिर्फ़ खाने के पैसे है !
में खुश नही हो पाता की मै किराए के घर मै रहता हूँ और यह खुश है की सोने को फुटपाथ तो है ,
मैं खुश नही की मेरा कोई दोस्त नही है , और यह खुश है क्यों की ये सबका दोस्त है ,
मैं खुश नही क्यों की मै सम्मान चाहता हूँ , और यह खुश है क्यों की ये गुमनामी चाहता है ,

शायद मुझे मेरे जवाब मिल गया , तलाश पूरी हो गयी आज इस मोड़ पर ,
अब वक्त आया है जब खोज के बारे मै औरों को बताना है , भाई खुशी तो आपके अंदर है बस दरवाजा खटखटाना है :)

Wednesday, February 11, 2009

For the One Whose Last Message Was : I love youuuuuuuuuuuuuuuuuu :-x :-x :-x..bye psycho..we are together..always :-x

Because She Would Ask Me Why I Loved Her

If questioning would make us wise
No eyes would ever gaze in eyes;
If all our tale were told in speech
No mouths would wander each to each.

Were spirits free from mortal mesh
And love not bound in hearts of flesh
No aching breasts would yearn to meet
And find their ecstasy complete.

For who is there that lives and knows
The secret powers by which he grows?
Were knowledge all, what were our need
To thrill and faint and sweetly bleed?.

Then seek not, sweet, the "If" and "Why"
I love you now until I die.
For I must love because I live
And life in me is what you give.

Wednesday, January 21, 2009

बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है

आज फिर बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है ,
तक जाती हूँ दिन-भर की दौड़-भाग से, घूरती आखों,
बेमतलब कटाक्षों से ,
शाम को घर पहुँचती हूँ तो , एक चूल्हा इंतजार करता है ,
मेरे पहुँचने से पहले , मेरे उपहास को तैयार करता है ,
सबको खुश करने में अपनी खुशी पता नही कहाँ खो गयी है ,
जागते - जागते, बच्चों का होमवर्क करवाने में मेरी नींद कहीं सो गयी है ,

बस अब नही सहा जाता ये ज़िम्मेदारियों का भंवर ,
बाबा तुम्हारी बिटिया अब तक गयी है ,
एक बार आ जाओ , छुपा लो अपनी गुड़िया को मजबूत हाथों में ,
ताकि तुम्हारी हथेलियों के बीच से में चिढ़ा सकूँ सब दुनिया को ,
बता सकूँ कि में भी किसी की लाडली हूँ ,

अगर तुम पास हो तो परवाह नही कि कौन जीता है कौन मरता है ,
बस बाबा, एक बार फिर तुम्हारी गोदी चढ़ने का मन करता है .

एसा भी होता है

एक बार पड़ोसी की लड़की को हम पर हमें प्रेम आया,
कोई बहाना न मिला तो चाय पर ही बुलाया ,
बोली पहुँचने पर की आप आए तो बहार आई,
मानो मुन्ना भाई डॉक्टर के पास कोई नयी बीमार आई.

यह बोल वह धीरे-धीरे कप में चीनी घोलने लगी ,
और शरारती आँखों से हमें उपर से नीचे तक तोलने लगी
फिर पास आ बोली की आप से कुछ कहना है , बहुत हुआ अब ना दर्द सहना है
अब तो हम भी सुनने को तैयार बैठे थे , मानो बरसों के भूंखे सैयार बैठे थे


पर तभी जाने कहाँ से उस बंजर भूमी पर भूचाल आ गया,
और उसका बाप कहीं से लेने हमारा हालचाल आ गया ,
उसने बड़े प्यार से पूछा - कि बेटा पिताजी अब कैसे हैं ,
टूटी टाँग कुछ सीधी हुई या अभी भी वैसे हैं .

फिर बोला कि तुमसे कुछ प्रार्थना हैं ,
समझ तो हम भी रहे थे की बुड्ढे को ज़रूर कुछ स्वार्थ साधना है |

बोला की सुना है की तुम्हारी बहन ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रही है .
केश सज्जा सीख गयी है मुख सज्जा का दम भर रही है ,
तुम बड़े अच्छे भाई हो जो रोज उसे छोड़ के आते हो पर
बेटा एक बात बताओ रोज निकल के तो इसे रास्ते जाते हो,

हमने कहाँ हाँ , तो बोले तो बेटा फिर अपनी फटफटी पर थोड़ी जगह बनाओ ,
और बड़ी बहन के साथ इस छोटी बहन को भी बिठाओ,
क्यों की पड़ोसी धर्म यही कहता है कि , पड़ोस में भी एक नेक भाई रहता है ,
उसके बाद हम कुछ सुन न सके , कमर उठाई और तोड़ा झुके ,
पड़ोसी धर्म को सौ गलियाँ देते वक्त मन को इसे गाने ने छुआ ,

कि ये क्या हुआ ----ये क्या हुआ :)