Wednesday, November 25, 2009

एक बरस गुजर गया

एक बरस गुजर गया और हमने क्या खोया क्या पाया ?
शब्दों की गुत्थम में उलझी आँधी और अंधेरे में चौकस एक काला साया.
में अभी-अभी वहाँ पर था जहाँ उस दिन लहू गिरा था एक खाकी वाले का,
जहाँ सो गया एक माँ का लाल , और जहाँ छूटा ठिकाना एक परिवार के निवाले का.
देखा तो ......
वहाँ आज भी एक छोटा सा दिया जल रहा था, कितनी भी तेज आँधी हो,
बन एक अनंत विचार निरंतर अंतर-मन में पल रहा है ,
वहाँ की मिट्टी आज भी एक मीठी सी सुगंध लिए लालिमा दिखा रही है,
उस खाकी वाले को याद कर जैसे पेड़ -पेड़ की एक, एक पत्ती मुस्कुरा रही है .

सुना वहाँ कयी माता हैं जो रोज आती है , कई पत्नी हैं , कयी बेटी है जो अश्रु बहाती हैं,
पर कभी भी वहाँ का उल्लास कम नही होता है, हर पल गर्व बढ़ता है जब उन शहीदों के लिए कोई रोता है.
आज भी उनके शोर्य की गाथा यहाँ दिन- रात गायी जाती है , सम्मान से देखती उन्हे लाखों आँखें ,
जगह- जगह उनके उदाहरण की मिसालें पायीं जाती है.

और इन सब से दूर सतर्क निगाहें, हर समय तत्पर , चौकस नज़र लिए कुछ लोग खड़े देखते रहते हैं ,
पता किया तो भान हुआ की इन्हे यहाँ का नया खाकी वाला कहते हैं ......

पुलिस के वीर जवानो के नाम "उस रात हम सो पाए क्यों की आप जाग रहे थे" |

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