Wednesday, January 21, 2009

बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है

आज फिर बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है ,
तक जाती हूँ दिन-भर की दौड़-भाग से, घूरती आखों,
बेमतलब कटाक्षों से ,
शाम को घर पहुँचती हूँ तो , एक चूल्हा इंतजार करता है ,
मेरे पहुँचने से पहले , मेरे उपहास को तैयार करता है ,
सबको खुश करने में अपनी खुशी पता नही कहाँ खो गयी है ,
जागते - जागते, बच्चों का होमवर्क करवाने में मेरी नींद कहीं सो गयी है ,

बस अब नही सहा जाता ये ज़िम्मेदारियों का भंवर ,
बाबा तुम्हारी बिटिया अब तक गयी है ,
एक बार आ जाओ , छुपा लो अपनी गुड़िया को मजबूत हाथों में ,
ताकि तुम्हारी हथेलियों के बीच से में चिढ़ा सकूँ सब दुनिया को ,
बता सकूँ कि में भी किसी की लाडली हूँ ,

अगर तुम पास हो तो परवाह नही कि कौन जीता है कौन मरता है ,
बस बाबा, एक बार फिर तुम्हारी गोदी चढ़ने का मन करता है .

एसा भी होता है

एक बार पड़ोसी की लड़की को हम पर हमें प्रेम आया,
कोई बहाना न मिला तो चाय पर ही बुलाया ,
बोली पहुँचने पर की आप आए तो बहार आई,
मानो मुन्ना भाई डॉक्टर के पास कोई नयी बीमार आई.

यह बोल वह धीरे-धीरे कप में चीनी घोलने लगी ,
और शरारती आँखों से हमें उपर से नीचे तक तोलने लगी
फिर पास आ बोली की आप से कुछ कहना है , बहुत हुआ अब ना दर्द सहना है
अब तो हम भी सुनने को तैयार बैठे थे , मानो बरसों के भूंखे सैयार बैठे थे


पर तभी जाने कहाँ से उस बंजर भूमी पर भूचाल आ गया,
और उसका बाप कहीं से लेने हमारा हालचाल आ गया ,
उसने बड़े प्यार से पूछा - कि बेटा पिताजी अब कैसे हैं ,
टूटी टाँग कुछ सीधी हुई या अभी भी वैसे हैं .

फिर बोला कि तुमसे कुछ प्रार्थना हैं ,
समझ तो हम भी रहे थे की बुड्ढे को ज़रूर कुछ स्वार्थ साधना है |

बोला की सुना है की तुम्हारी बहन ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रही है .
केश सज्जा सीख गयी है मुख सज्जा का दम भर रही है ,
तुम बड़े अच्छे भाई हो जो रोज उसे छोड़ के आते हो पर
बेटा एक बात बताओ रोज निकल के तो इसे रास्ते जाते हो,

हमने कहाँ हाँ , तो बोले तो बेटा फिर अपनी फटफटी पर थोड़ी जगह बनाओ ,
और बड़ी बहन के साथ इस छोटी बहन को भी बिठाओ,
क्यों की पड़ोसी धर्म यही कहता है कि , पड़ोस में भी एक नेक भाई रहता है ,
उसके बाद हम कुछ सुन न सके , कमर उठाई और तोड़ा झुके ,
पड़ोसी धर्म को सौ गलियाँ देते वक्त मन को इसे गाने ने छुआ ,

कि ये क्या हुआ ----ये क्या हुआ :)