Sunday, March 7, 2010

आनंद की खोज

आनंद की खोज

आनंद की खोज में बाबरा पथिक में चला,
ढूँढा उसे बहुत खेत खलिहानो में,
पर वो अद्रश्य कहीं ना मिला,
रुका ना में थका ना में,अनवरत ही चलता गया,
जीने की आशा थी बहुत तो म्रत्यु को छलता गया,
मरु गयी मैदान गये , पर हो गया सागर ...
ऋषि मिले .विद्वान मिले , और ह्रदय हो गया गागर..
अपनी गागर को उनके अंश वचनो से भरता चला...
आनंद की खोज में बाबरा पथिक में चला.
ठहरा भी में , ठिठका भी में....
कभी-कभी उबता की अति में झिझका भी में,
पर मन में था विचार समग्र कि ..
आनंद को पाना है, हों चाहे कितनी भी व्रष्टी ....
अब जीत कर ही जाना है..
सोते,जागते,हसते ,रोते ...
भींगते ,गाते ,पाते खोते...
बहता रहा हर नदी-नदी , हर घाट से में मिला....
आनंद की खोज में बाबरा पथिक में चला....

संकल्प

सूर्य के तेज से टकराने में चला,
भर हुंकार, छोड़ विकार
जीवन ज्योति जलाने में चला
मन में है उमंग बहुत,
जीत का भरोसा है .
आज मौत सामने भी हो तो ..
ले जा शीश ये परोसा है.
डर को त्याग , निडर हो ,
प्रचंड तूफ़ानो के वेग से टकराने में चला ...
भर हुंकार, छोड़ विकार
जीवन ज्योति जलाने में चला,
डगर है कठिन मगर , रास्ते स्वयं बनाने है.
काल के कपाल पर पदचिन्ह आज छपाने है.
सोते भारत को तनिद्रा से जगाने में चला .....
भर हुंकार, छोड़ विकार
जीवन ज्योति जलाने में चला......