Monday, August 13, 2012

मेरा मौला मस्त मौला

एक बार एक विद्वान ने मुझसे पूछा कि भाई तू कैसे बड़ा हुआ ?
मैने भी बता दिया , भाई बार - बार गिरा और फिर धूल झाड़ खड़ा हुआ.
अच्छा ये बता दे , तूने कौन सी ज्ञान की पुस्तक पढ़ी , कहाँ - कहाँ हाजरी लगाई.
भाई हाजरी की क्या बात बताऊं , अपन ने तो हमेशा मंदिरो, मज्ज़िदों के बाहर से ही सीटी बजाई.
क्या मूर्खों सी बात करता है ऐसे खी-खी कर घूमने से भी भला कहीं ज्ञान मिलता हैं.
भाई ज्ञान का तो पता नही पर रोती शक्लों को हँसाने से बहुत मान मिलता है.
हा हा महा मूर्ख , जीवन व्यर्थ कर रहा है , नर्क में ही जायगा.
कोई बात नही भाई साहब , बंदा वहाँ भी सीटी बज़ाएगा लोगों को हँसाएगा.
अरे पागल अभी भी समय है सुधर जा , पोथी पढ़ - शास्त्रों में ध्यान लगा , ज्ञान मिलेगा.
भाई तू तोड़ा पंसारी को हँसा के देख ले जिंदगी भर मुफ़्त का पान मिलेगा.
अबे मूर्ख , पापी , अज्ञानी , तू मेरा मज़ाक बना रहा है.
नही भाई , बंदा तो तेरे मज़े लेके , पढ़ने वाले विद्वानो को हंसा रहा है.
मेरा मौला मस्त मौला .... :)