दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
लेकिन दुर्योधन
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की दे न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।
हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है।
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां
देखते कि मुल्क सारा यूँ टशन में थ्रिल में है
आज का लौंडा तो कहता हम तो बिस्मिल थक गए
अपनी आज़ादी तो भैया लौंडिया के दिल में है
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्डी भी सिलती इंग्लिसों की मिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
मुल्क़ ने हर शख़्स को जो काम था सौंपा
उस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी
बनता था तैरने में उस्ताद शहर का
कर गोमती को पार तेरी माँ का ___
this was an old one:
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि तू हिमालय पे जा पहुँचे
और ख़ुदा ख़ुद तुझसे ये पूछे, अबे ए लैकट, उतरेगा कैसे
another:
नाख़ुदा को गर्दिश-ए-तूफ़ाँ से डरना चाहिए
मेरा क्या मैं नाख़ुदा की नाक मै घुस जाऊगा
ultimate one:
इस मुल्क ने हर शख्स को जो काम था सौंपा| उस शख्स ने उस काम कि माचिस जला के छोड़ दी |
Friday, April 17, 2009
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