ट्रेन पूरी गति से चली जा रही थी,सेकेंड क्लास के उस डिब्बे में चर्चा अपने चरम पर पहुँच चुकी थी,एक से एक बुद्धजीवी अपने तर्क रख रहे थे आप लोगों के यहाँ बच्चे बहुत तेज होते है,एक तमिल महाशय सरदारजी को समझा रहे थे, नहीं जी यह ग़लत बात है हमारे यहाँ के बच्चों को आधुनिक कह सकते हैं पर तेज कहना सही न होगा,एक बनारसी भैईयाज़ी,सरदारजी के समर्थन में कूद पड़े यह सुनकर अब तक शांत बैठे एक तेलगु महाशय भी जोश में आ गये और बोले की हमारे यहाँ से भी कई बच्चे बाहर पढ़ने जाते है पर,भारतीयता की तहज़ीब नही भूलते,सच्ची भारतीयता सिर्फ़ दक्षिण में ही है
सब लोग अपने-अपने तर्क रख रहे थे,सरदारजी ने अपना एक किस्सा बताना शुरू किया ,की कैसे कुछ सालों पहले जब वे मद्रास गये थे तो उन्हे कुछ रिक्शे वालों ने लूट लिया था ,और तब से उन्होने कसम खा ली, कि जब तक होगा ,मद्रासियों से बचकर रहेंगे अब तमिल महाशय भी भड़क गये वो बोले केंद्रीय सरकार भी हमारे साथ ऐसा ही बर्ताब करती है,सब कुछ उत्तर के लोगों में ही बँट जाता है और हमारे बच्चों को नौकरी भी नही मिलतीं हैं , नही ऐसी बात नही है,नौकरियाँ हमारे यहाँ भी कम हो रही है पर हमारे बच्चों को शुरू से ही मेहनत कि आदत होती है बनारसी भैया जी फिर बीच में टपक पड़े
आप मद्रासियों कि एक आदत होती है कि अगर आप को हिन्दी आती है तो भी आप नही बोलते और खास तौर से हम उत्तर भारतीयों कि तो बिल्कुल भी मदद नहीं करना चाहते ,सरदार जी तेलगु महाशय से कह रहे थे , और आप उत्तर भारतीयों कि भी एक आदत होती है कि तमिल ,तेलगु,मलयालम सब आपको मद्रासी ही दिखाई देते है,अगर मैं आपको सरदार कि जगह लाहौरी या अमृतसरी कहूँ तो ?
इसी बीच, उनके डिब्बे मैं ऐक आधुनिक सा दिखने वाला नौजवान आकार बैठ गया वह कनों मैं आइपॉड लगाए हुए था,लंबे बाल और फॅन्सी कमीज़,पाजामा पहने ,वो अमेरिकी सभ्यता का कोई आधुनिक भारतीय अवतार लग रहा था बबलगम चबाते हुए उसने सब कि तरफ मुस्कुरा कर देखा पर किसी ने भी उसकी मुस्कुराहट का जवाब नही दिया अब हमारे चारों बुद्धजीवी कम से कम किसी बात पर तो सहमत थे कि यह लड़का किसी को भी पसंद नही आया,चारों ने अपनी चर्चा जारी रखी और वो लड़का बस उनकी बातें सुनकर मुस्कुराता रहा
ढायं-ढायं,इससे पहले कोई कुछ समझ पाता दो गोलियाँ चल चुकीं थी,तमिल भाई सरदार जी के पीछे से छुपकर उसे देख रहे थे और तेलगु महाशय भैया जी को थामे खड़े थे अगर वह तेज़ी से खड़ा नही होता तो बदमाश क़ी गोलियाँ उन चारों में से किसी को भी लग सकती थी सरदार जी का बिना सोचे-समझे किए गये गुस्से ने बदमाश को भड़का दिया था और उसने पिस्टल निकाल ली , वो तो भला हो कि वो आधुनिक लड़का बीच में आ गया और गोली उसने अपने उपर झेल ली,उसकी अचानक क़ी गयी इस हरकत से बदमाश भी घबरा गया और सबको धक्का देकर,डब्बे से कूद कर भाग गया
अस्पताल में चारों लोग उसके बेड के पास खड़े थे,डॉक्टरों ने उस के घर वालों को फोन कर दिया था कुछ देर बाद वे भी आ गये , उसके पिता सरदार और माँ तमिल थी और यह लड़का एक कॉल सेंटर में काम करता था और अपने एक मलयालम दोस्त के साथ बंबई में कमरा लेकर रहता था