Monday, October 13, 2008

पंगत की दावत

रमेश की बहन की शादी होने वाली थी और वो पूरे पाँच साल बाद अपने शहर वापिस आ रहा थाअपनी नौकरी के दौरान उसने बहुत से देश घूमे , तरह-तरह की सभ्यताओं को समझा और अंत मैं अमेरिका को नमस्कार कर वहाँ बस गया,पिछले दो साल से वो अमेरिका मैं ही था और अब तो वहाँ की एक जानी मानी सूटेड-बूटेड हस्ती बन चुका था रमेश वापिस आया तो एरपोर्ट पर मझले चाचा उसे लेने आए,और रमेश बचुआ कैसे हो ?,बहुत देर लग गयी,का फ्लाइट लेट हो गयी थी ? उन्होने रमेश पर प्रश्नों की बौछार कर दी रमेश हतप्रभ था, उसे इतने गर्मजोश स्वागत की उमीद नही थी या शायद पाँच साल बाद किसी ने उसे बचुआ कहा था

मझले चाचा का बेटा गोलू एरपोर्ट के बाहर गाड़ी लेकर खड़ा था,उसने लपक कर रमेश के पैर छुए और इससे पहले की रमेश कुछ समझ पता वो रमेश का समान गाड़ी में रख रहा था उसके बाद दिल्ली से मेरठ तक के रास्ते में चाचा , रमेश से तरह-तरह की बातें पूछते , बताते रहे और वो हूँ,हाँ में जबाब देता रहा उसके मन मै तो अलग ही उधेड़ बुन चल रही थी,रास्ते मै आने वाली हर-सड़क ,हर -गली की तुलना वो अमेरिका से करता,और फिर सोच में डूब जाता करीब एक घंटे बाद वे मेरठ पहुँच गये अब उसे ये शहर बहुत अलग-अलग सा दिखाई दे रहा था,जो अप्सरा पार्क उसके बचपन के दिनो की जन्नत था ,आज उसके सामने से निकलते हुए वो उसे पहचान भी नही पाया

दरवाजे पर माँ,बाबूजी उसका इंतजार कर रहे थे , कुछ पड़ोसी भी अपने छज्जों मै उसे देखने के लए खड़े थे जैसे ही गाड़ी घर की गली के मोड़ पर पहुँची ,लाला आ गयो,लाला आ गयो,सब तरफ शोर मच गया अरे हाँ, अब रमेश को याद आया उसका बचपन का नाम लाला ही तो था खैर छोटी-मोटी पूजा के बाद लाला (रमेश) घर के अंदर आ गया माँ ,मौसी, सबने उसके पतले होने की शिकायत करते हुए शुद्ध देसी वाणी मैं अमेरिका को कई गलियाँ दे डालीं पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था , कमली मौसी,छज्जू काका,सेवला वाले ताउजी ,करीब -करीब सभी लोग आ चुके थे वो तो भला हो गोलू क़ा की उसने उपर छत वाला कमरा रमेश के लए सॉफ करवा दिया था और रमेश को आराम करने के लए वहाँ भेज दिया गया

शाम को रमेश अपने कमरे मै अकेला लेटा था और,बाहर लोगों के बात करने की आवाज़ें आ रही थी बीच-बीच मै किसी के ज़ोर से हँसने की आवाज़ आती तो रमेश झुंझला जाता ये लोग इतनी सी बात मै कितने खुश हो रहे हैं ,पता नही इस देश क़ा क्या होगा अनगिनत विचार उसके दिमाग़ को झझकोर रहे थे और उसने फ़ैसला किया की कल से वो गुड्डी की शादी क़ा सारा काम संभाल लेगा रात को वो , बाबूजी के पास गया और उनसे शादी के इंतज़ामो के बारे मै पूछा,लगभग सब कुछ तय हो चुका था , बस दावत के बारे मै फ़ैसला लेना बाकी था बाबूजी ने रमेश को बताया की उन्होने पाँच कहारों से बात कर ली है जो पंगत को खाना परोसेंगे अब रमेश की हालत अजीब हो गयी, तो क्या बाबूजी ,गुड्डी की शादी मै पंगत की दावत करवा रहे थे

अगले दिन की सुबह , मझले चाचा,बाबूजी,गोलू,सेवला वाले काका सब साथ बैठे हुए थे और रमेश उन सबको पंगत की दावत के नुक़सानो पर व्याख्यान दे रहा था , आख़िर इतने परोसने वाले कहाँ से आएँगे और गंदगी भी बहुत हो जाएगी पर बचुआ परोसन को तो बहुत लोग तैयार हो जाएँगे, हमार परिवार क़ा रुतबा ही काफ़ी है --- मझले चाचा बीच मै बोले सेवला वाले काका ने भी अपना तर्क रखा, जो स्वाद ,सकोरे मै परोसे रायते मै है वो कहीं और कहाँ और लगा कि इतना बोलकर वे स्वाद की कल्पना मै खो गये मगर आप लोग समझते क्यों नही , मेरे काई दोस्त शादी वाले दिन ही अमेरिका से आने वाले है ,और ये पंगत की दावत मेरी समझ मै नही आ रही काफ़ी देर तक बहस चलती रही पर रमेश के तर्क उन लोगों कि समझ मै नही आए और पंगत कि दावत ४-१ से विजयी घोषित हो गयी

रमेश को मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था कि क्यों उसने अपने अमेरिकी दोस्तों को शादी मै बुलाया,पर वो अब कुछ कर भी नही सकता था , खैर उसने अपनी ओर से उन लोगों के लिए, मेरठ के सबसे अच्छे होटेल मै कमरे बुक करवा दिए २६ जुलाई, शादी क़ा दिन भी आ गया,रमेश के सभी अमेरिकी दोस्त समय से आ गये और सबको सम्मान के साथ होटल मै टिका दिया गया ९ हलवाइयों क़ी टीम २ दिन से काम में लगी हुई थी और शाम को सात बजे पहली पंगत को बिठाने क़ा निर्णय किया गया रमेश अपने परिवार कि रस्म के अनुसार , पगड़ी लगाए सबका स्वागत कर रहा था तीस-तीस लोगों कि पंगत को बैठाने क़ा इंतज़ाम किया गया था और सेवला वाले काका खुद ऐक कुर्सी डाले परोसने क़ा इंतज़ाम देख रहे थे

हेल्लो स्टीव,माइरा ! कॉंग्रेट्स रमेश , रमेश के दोस्त आ चुके थे और अब उसकी साँसें काबू से बाहर हुई जा रही थींसका मन कह रहा था क़ी भगवान कुछ ऐसा कर दें कि यह लोग स्वयं ही खाने क़ा कार्यक्रम रद्द कर दें रमेश सब को स्टेज पर गुड्डी से मिलवाने को लेकर गया , कुछ देर बाद जय-माला क़ी रस्म भी हो गयी और रमेश क़ी सारी प्रार्थनाओ के विपरीत स्टीव खाने के इंतज़ाम के बारे मै पूछ रहा था अब नज़ारा मजेदार था ,१५ फिरंगी और १५ भारतीयों क़ी एक मिली जुली पंगत खाने के लिए बैठी हुई थी सबसे पहले इत्र लाकर उनके मेजों पर छिड़का गया और फिर मशीन क़ी तरह चलते हाथों से धड़ा-धड़ पत्तल ,सकोरे लिए कहारों को टोली आने लगी पूड़ी-पूड़ी बोलते हुए गोलू के दोस्त भी यहाँ से वहाँ भाग रहे थे सब परोसने वाले दुगने जोश से काम कर रहे थे आख़िर ,गोरी चमड़ी वालों को पंगत परोसने क़ा मौका दुर्लभ ही था आई वॉंट सम रायता , स्टीव एक कहार से बोला , ओ भैया चला रायता, और फटा-फट रायते क़ी बाल्टी पंगत मै घूमने लगी इमरती और काजू क़ी बरफी भी पीछे-पीछे चलती रहीं सारे अमेरिकी भोजन करके तृप्त हो गये और जब उठने क़ा समय आया तो उन्हे पान परोसा गया पंगत क़ी दावतों मै पान ज़रूरी नही होता , पर मझले चाचा ने बचुआ के खास मेहमानों के लिए इंतज़ाम करवाया था

ये हमारी जिंदगी क़ा बेस्ट डिनर होता रमेश हम इंडिया मै बहुत शादी अटेंड किया पर इतना मज़ा कभी नही आया रमेश को सब धन्यवाद दे रहे थे और बाबूजी और मझले चाचा दूर खड़े यह सब देखकर मुस्कुरा रहे थे

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