Wednesday, December 31, 2008

और वो बेबाक हो गया !

सुबह-सुबह कॉलर तक के बटन लगाए और झकाझक सफेद बुरशट पर चमचमाते लाल रंग का कन्ठ्लन्गोट पहने, सुहास दफ़्तर के लिए निकला, आज डेनमार्क से उसके फिरंगी मालिक लोग आने वाले थे. भैया कॉर्पोरेट की दुनिया भी अजीब होती है,यहाँ आप मालिकों को मालिक नहीं कुलीक कहतें हैं, हाँ यह बात दूसरी है कि उनके आने के बाद आपको ,आपका कुल समझा दिया जाता है. सुहास देशी परिवेश में पला - बढ़ा लड़का था,जवानी की दहलीज पर भटकन दिखी तो पिताजी ने सॉफ़्टवेयर सीखवा दिया और लल्लू पहुँच गये बंबई नौकरी करने. अब बचपन से लेकर जवानी तक ,जो फटी बनियान पहने आगरा की कुंज गलियों में घूमा हो,वह भला कन्ठ्लन्गोट संस्कृति कहाँ समझ पाता . खैर कल देशी मालिकों का फरमान आया था की बड़े पापा(विदेशी मालिक) आने वाले है तो कन्ठ्लनोट तो बांधना ही पड़ेगा,आख़िर भारत की इज़्ज़त का सवाल जो था.

सुहास को मन ही मन बड़ा गुस्सा आ रहा था,ये ससुरे क्या सबरी कुतीब मीनार ,ताजमहल छोड़ कर मेरा कन्ठ्लन्गोट ही देखने आ रहे है ,सोचते-सोचते उसने अपने देशी मालिकों को पचासों गलियाँ दे डालीं . आज दफ़्तर का माहॉल बदला -बदला लग रहा था,सारे कंप्यूटरों के बीच लाल-लाल कन्ठ्लन्गोट लगाए लोग बतीसे चमका रहे थे.सुहास को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे मुर्गों के दबड़े मैं धक्का दे दिया है और सारे मुर्गे किसी मादा को प्रणय के लिए राज़ी करने को अपनी-अपनी कलंगी चमका रहे हों .धीरे -धीरे वह भी चलते हुए अपनी जगह पर जाकर बैठ गया.

बे(बैठने कि जगह) मै भगदड़ मची हुई थी और सभी लोग इधर-उधर दौड़ रहे थे,कसम से इतनी दौड़- भाग तो बनियों कि शादी मैं भी नही होती,खैर कुछ देर बाद बिगुल बज गया और पता चला कि डेनमार्क वाले मलिक,माफ़ कीजिएगा कुलिक लोग आ चुके हैं . बे का दरवाजा खुला और पहले ऐक लाल कन्ठ्लन्गोट उसके पीछे एक पेट और पीछे पेट के स्वामी देशी मालिक ने प्रवेश किया.सुहास भी अपनी जगह से बैठा-बैठा ये सब देख रहा था पर उसकी निगाह तो पीछे आने वालों को ढूंड रही थी जिनके सामने उसे प्रदर्शन देना था.

तभी पीछे से गोरी चमड़ी वाले चार लोग टी-शर्ट, पजामा(लोअर) पहने दाखिल हुए . तो जनाब , यह थे सुहास के विदेशी मालिक,जिनके लिए कन्ठ्लन्गोट सन्स्क्रति का अतिक्रमण किया गया था . असल में उनके कॉन्सुलेट ने उन्हे पहले ही सूचना दे दी थी कि , भारत कि गर्मी को देखते हुए क्या पहनना ठीक रहेगा.सुहास को बहुत गुस्सा आ रहा था और उसका कंठ लंगोट उसे फाँसी के फंदे जैसा महसूस होने लगा . उसी पल उसने कुछ सोचा और बरबस हि उसका हाथ अपने कंठ लंगोट पर था.

जब कुछ देर बाद उसका प्रदर्शन शुरू हुआ,वह विदेशी मालिकों के सामने बेबाक प्रदर्शन दे रहा था ,हाँ यह बात दूसरी है कि उसका कन्ठ्लन्गोट उसकी मेज पर मायूस पड़ा उसे देख रहा था.

Monday, December 22, 2008

घुटन

रात के तीन बजे अचानक आकाश क़ी आँख खुल गयी उसका पूरा शरीर पसीने में लथपथ था , फिर वही सपना पता नही इंसान जीवन मै क्या -क्या पाना चाहता है वो एक बेहतर जिंदगी क़ी तलाश में कभी भी अपने आज से सामंजस नही बैठा पाता और हमेशा अपने कल से भागने क़ी कोशिश करता रहता है , आकाश क़ी हालत भी कुछ एसी ही हो गयी थी , उसकी शादी को पाँच साल बीत चुके थे पर इन पाँच सालों मै उसे कभी पाँच रात भी चैन क़ी नींद नसीब नही हुई थी हर रात एक ही सपना उसे झझकोर के रख देता , हर रात बंसी का मासूम चेहरा उसके सामने आ जाता जो उससे जान क़ी भीख माँगता दिखाई देता था और फिर अचानक बंसी ज़ोर-ज़ोर हँसने लगता और उसका चेहरा कठोर होता जाता
आकाश बचपन से ही प्रखर बुद्धि का स्वामी था , बीए करने के बाद सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास की और कलेक्टर बन गया , कई शहरों में तबादले के बाद उसको आंध्र प्रदेश के गुडुर में काम करने का मौका मिला था यह शहर माइका की खदानो के लिए दुनिया भर में जाना जाता हैं इस शहर की खदानो से निकला माइका भारत सारी दुनिया में निर्यात करता है बंसी ऐसी ही एक खदान में काम करने वाले मजदूर श्रीनिवास का बेटा था , उसकी माँ उसे जन्म देते वक्त स्वर्ग सिधार गयी और तब से श्रीनिवास ने ही उसे अकेले पाला था जब आकाश गुडुर पहुँचा तो वहाँ के रिवाज अनुसार खदान मालिकों नई उसका भव्य स्वागत किया और सेवा में मुद्रा के साथ -साथ श्रीनिवास को भी उस पर अर्पण कर दिया गया
श्रीनिवास अब सुबह से आकाश के बंगले पर आ जाता , सफाई करता , खाना बनता और शाम को तीन-चार घंटे के लिए खदान में चला जाता,बंसी भी उसके साथ ही आता था और श्रीनिवास के वापिस आने तक बंगले पर ही छोटे मोटे काम करता रहता , पहले कुछ दिन तो आकाश की व्यस्तता के कारण उसका ध्यान बंसी पर गया ही नही पर ऐक दिन जब आकाश दोपहर के समय थोड़ा फ़ुर्सत में था तब उसे बंसी दिखाई दिया पसीने मैं लथपथ अपने छोटे-छोटे हाथों में कपड़ा लिए मेज की धूल झाड़ता हुआ आकाश ने प्यार से उसे अपने पास बुलाया तो वो भागता हुआ आया , हाँ बाबूजी बोलिए , क्या नाम है तुम्हारा , बंसी बाबूजी बड़े होकर क्या बनना है , खदान में काम करूँगा बाबूजी उसकी मासूमियत पर आकाश को हँसी आ गयी , पदाई करते हो , नही बाबूजी चलो में तुम्हे पढ़ाता हूँ और उस दिन से आकाश ने खाली समय में बंसी को पढ़ाना शुरू कर दिया
समय बीतता गया और बंसी के दिमाग़ मैं भी ऐक बात भर गयी की उसे पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनना है , श्रीनिवास भी यह देखकर खुश होता की चलो कम से कम उसके बच्चे का जीवन सुधार जायगा इसी बीच अचानक एक दिन ऐक अनहोनी हो गयी श्रीनिवास की एक दुर्घटना में मौत हो गयी और बंसी अकेला हो गया आकाश अब भी कभी -कभी उसको पढ़ाता था पर जिंदगी की दूसरी व्यस्तताओं के बीच ये क्रम भी धीरे-धीरे छूट गया शुरू में तो बंसी आकाश के बंगले में आता और खड़ा रहता पर जब आकाश उसे समय नही दे पा रहा था तो उसने भी कुछ समय मे वहाँ आना छोड़ दिया , आकाश हर रोज सोचता था की कल वो बंसी की खोज खबर लेगा पर वो कल कभी आ ही नही पाया और समय बीतता गया और बंसी की बातें खदानो के शोर में कहीं खो गयी और वो शहर भी पीछे छूट गया हाँ आज से करीब पाँच साल पहले मीडीया में ऐक बाल मजदूर की कहानी आई थी जिसकी माइका की खदान में दम घुटने से मौत हो गयी थी

Wednesday, December 17, 2008

श्रमजीवी

रात को तक-हारकर घर लौटा श्रमजीवी ,
देखता है भूखे बच्चे और जर्जर माँ बाँट जोतती.
श्रमज़ीवी को आज तनख़ाह मिली थी,
पर परजीवी भी थे वसूली को तैयार .
आठ सौ पचास रुपये मैं से अब सिर्फ़ कुछ नोट बचे थे ,
श्रमज़ीवी ने एक सौ पचास बचे रुपये खर्च किए
खाना आया , पेट भरे और एक रात और जीवन जिए |
श्रमज़ीवी आज खुश था ,इस बार परजीवी कुछ तो छोड़ गये ,
एक दिन भोजन मिला ,कल सुबह क़ी कल देखेंगे ,
कुछ मिला तो ठीक , वर्ना फिर परिवार को श्रम से सीचेंगे |

सोया हुआ शहर ( बाल श्रम )

रात्रि के अंतिम पहर में , तीव्र निद्रा में सोया शहर.
ये जान में कुछ सैर को निकला , देखा क़ी -
चटकी खिड़कियों मैं कुछ साए हिल रहे हैं ,
कुछ हाथ अभी भी कपड़ा दर कपड़ा सिल रहे हैं .

जिग्यासा देवी ने मेरे पैरों को बरबस ही उस ओर मोड़ दिया ,
रोंगटे खड़े करने वाला द्रश्य सामने गोचर हुआ ,
देखा छोटे-छोटे हाथ मशीन क़ी तरह काम कर रहे थे ,
रात के इस साए मैं अंजान कारीगरों का नाम कर रहे थे |

और तीव्र निद्रा मैं सोया शहर अब भी सोया हुआ था ,
किसे परवाह कौन सा बचपन कहाँ खोया हुआ था |
पहर ख़त्म हुआ और चहल - पहल शुरू हुई पर
शहर शायद अब भी सोया हुआ है |

Tuesday, December 16, 2008

मुझको भी आरक्षण दो !

समाज के वर्गीकरण को मिल गया नया अयाम.
आरक्षण क़ी माँग पर नित्य झंडे टंग रहे तमाम.
वर्ग,वर्ण,रंग सब "आरक्षित कोटा " जोड़ना चाहते हैं.
चटकी हुई मेढ को न जाने , कितने हिस्सों में तोड़ना चाहते हैं .
पर व्यवस्था क़ी इस धुरी में कोई मेरी माँग भी सुन लो ,
मैं इस देश क़ी मेधा हूँ कोई मुझको भी आरक्षण दो .

मैने अपने जीवन मैं दिन-रात मैं फ़र्क न किया .
जब सब जग सोया , मैने ज्ञान आत्मसात किया .
माँ ने जेवर गिरवी रखकर , शिक्षा का व्यय सहा .
बाबा रोज दफ़्तर पैदल जाते पर मुझसे कभी कुछ न कहा .
पग-पग बढ़ मैने भी ,सफलता का परचम लहराया.
अपने भविष्य का सुखद चित्रण , सदैव माँ-बाबा क़ी अश्रुत आखों में पाया .

पर आज जब में मेहनत से पढ़ लिखकर तैयार हूँ ,
द्वितीय श्रेणी सब दफ़्तर जा रहे , में ही एक बेकार हूँ .
जब-जब नौकरी माँगने ,किसी द्वार पर जाता हूँ .
आरक्षण क़ी काली छाया को स्वागत द्वार पर पाता हूँ .
विस्मित बुद्धि , शून्य मस्तिष्क , कोई तो मेरी हालत पर तरस खाओ.
या तो मुझे मुक्ति दे दो , या फिर आरक्षित बनाओ .

भूख

एक छोटा बच्चा , रोता अपनी माँ को खोजता है.
फटे टाट के कोने से अपने आँसू पोछता हुआ,
माँ खाना लाने गयी थी , टूटे झोपडे में दिया भी दम तोड़ रहा है.

बच्चे का तीव्र क्रंदन , मानों आकाश में चमकती बिजली से ताल बैठा रहा है.
तभी हस्ते हुए ठेकदार क़ी गाड़ी माँ को छोड़ती है.
अस्त व्यस्त कपड़ों के बीच खाने क़ी थैली चमक उठी ,
भूखा बच्चा आँसू पोछता, थैली पर झपटा .
हाँ भूख ही तो मिटानी थी इस माँ को ,
एक क़ी भूख मिटाकर दूसरे क़ी भूख मिटायी ,
वाह रे वाह समाज , अब करो चरित्र क़ी हसाई .

Tuesday, December 2, 2008

परिवर्तन कैसे होगा ?

डरो नही विचार करो , दंभ पर सशक्त वार करो |
सजल सपनो को आज़ाद कर, जीवन को साकार करो ||
क्यों कि अंतर आत्मा को जो जगाएगा वही परिवर्तन लाएगा ||

आगे बढ़ो , स्वतंत्र हो , शहीदों क़ी कीर्ति का गान करो |
ज़िम्मेदारियों से भागो मत , संतुष्ठी का सोपान करो |
क्यों कि जो भारतीय , भारतीयता समझ जायगा , वही परिवर्तन लाएगा ||

भीतर - बाहर क़ी लड़ाइयाँ ख़त्म कर , एक होने का जतन करो |
नैतिकता का पालन कर , बाँटने वाली शक्तियों का ध्वंस-पतन करो ||
क्यों जो भारतीय ,दूसरे भारतीय के दुख पर अश्रु बहाएगा ,वही परिवर्तन लाएगा ||

क्रोध को भूलो मत ,पर साथ -साथ स्रजन कि दिशा में नव निर्माण करो |
प्रश्न करो पालकों से , और उत्तर मिलने तक उनका जीवन हाड़ करो ||
क्यों कि जो भारतीय , प्रश्न करना सीख जायगा , वही परिवर्तन लाएगा ||

जोड़ते जाओ हाथों से हाथ , मानव श्रंखलाएँ तैयार करो |
जाति, धर्म , जिला , राज्य से पहले , भारत माँ से प्यार करो ||
क्यों कि जो भारतीय , अखंडता का महत्व समझ जायगा , वही अखंड भारत बनाएगा, वही परिवर्तन लाएगा ||

"ज़य अखंड भारत "