Wednesday, December 17, 2008

श्रमजीवी

रात को तक-हारकर घर लौटा श्रमजीवी ,
देखता है भूखे बच्चे और जर्जर माँ बाँट जोतती.
श्रमज़ीवी को आज तनख़ाह मिली थी,
पर परजीवी भी थे वसूली को तैयार .
आठ सौ पचास रुपये मैं से अब सिर्फ़ कुछ नोट बचे थे ,
श्रमज़ीवी ने एक सौ पचास बचे रुपये खर्च किए
खाना आया , पेट भरे और एक रात और जीवन जिए |
श्रमज़ीवी आज खुश था ,इस बार परजीवी कुछ तो छोड़ गये ,
एक दिन भोजन मिला ,कल सुबह क़ी कल देखेंगे ,
कुछ मिला तो ठीक , वर्ना फिर परिवार को श्रम से सीचेंगे |

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