सुबह-सुबह कॉलर तक के बटन लगाए और झकाझक सफेद बुरशट पर चमचमाते लाल रंग का कन्ठ्लन्गोट पहने, सुहास दफ़्तर के लिए निकला, आज डेनमार्क से उसके फिरंगी मालिक लोग आने वाले थे. भैया कॉर्पोरेट की दुनिया भी अजीब होती है,यहाँ आप मालिकों को मालिक नहीं कुलीक कहतें हैं, हाँ यह बात दूसरी है कि उनके आने के बाद आपको ,आपका कुल समझा दिया जाता है. सुहास देशी परिवेश में पला - बढ़ा लड़का था,जवानी की दहलीज पर भटकन दिखी तो पिताजी ने सॉफ़्टवेयर सीखवा दिया और लल्लू पहुँच गये बंबई नौकरी करने. अब बचपन से लेकर जवानी तक ,जो फटी बनियान पहने आगरा की कुंज गलियों में घूमा हो,वह भला कन्ठ्लन्गोट संस्कृति कहाँ समझ पाता . खैर कल देशी मालिकों का फरमान आया था की बड़े पापा(विदेशी मालिक) आने वाले है तो कन्ठ्लनोट तो बांधना ही पड़ेगा,आख़िर भारत की इज़्ज़त का सवाल जो था.
सुहास को मन ही मन बड़ा गुस्सा आ रहा था,ये ससुरे क्या सबरी कुतीब मीनार ,ताजमहल छोड़ कर मेरा कन्ठ्लन्गोट ही देखने आ रहे है ,सोचते-सोचते उसने अपने देशी मालिकों को पचासों गलियाँ दे डालीं . आज दफ़्तर का माहॉल बदला -बदला लग रहा था,सारे कंप्यूटरों के बीच लाल-लाल कन्ठ्लन्गोट लगाए लोग बतीसे चमका रहे थे.सुहास को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे मुर्गों के दबड़े मैं धक्का दे दिया है और सारे मुर्गे किसी मादा को प्रणय के लिए राज़ी करने को अपनी-अपनी कलंगी चमका रहे हों .धीरे -धीरे वह भी चलते हुए अपनी जगह पर जाकर बैठ गया.
बे(बैठने कि जगह) मै भगदड़ मची हुई थी और सभी लोग इधर-उधर दौड़ रहे थे,कसम से इतनी दौड़- भाग तो बनियों कि शादी मैं भी नही होती,खैर कुछ देर बाद बिगुल बज गया और पता चला कि डेनमार्क वाले मलिक,माफ़ कीजिएगा कुलिक लोग आ चुके हैं . बे का दरवाजा खुला और पहले ऐक लाल कन्ठ्लन्गोट उसके पीछे एक पेट और पीछे पेट के स्वामी देशी मालिक ने प्रवेश किया.सुहास भी अपनी जगह से बैठा-बैठा ये सब देख रहा था पर उसकी निगाह तो पीछे आने वालों को ढूंड रही थी जिनके सामने उसे प्रदर्शन देना था.
तभी पीछे से गोरी चमड़ी वाले चार लोग टी-शर्ट, पजामा(लोअर) पहने दाखिल हुए . तो जनाब , यह थे सुहास के विदेशी मालिक,जिनके लिए कन्ठ्लन्गोट सन्स्क्रति का अतिक्रमण किया गया था . असल में उनके कॉन्सुलेट ने उन्हे पहले ही सूचना दे दी थी कि , भारत कि गर्मी को देखते हुए क्या पहनना ठीक रहेगा.सुहास को बहुत गुस्सा आ रहा था और उसका कंठ लंगोट उसे फाँसी के फंदे जैसा महसूस होने लगा . उसी पल उसने कुछ सोचा और बरबस हि उसका हाथ अपने कंठ लंगोट पर था.
जब कुछ देर बाद उसका प्रदर्शन शुरू हुआ,वह विदेशी मालिकों के सामने बेबाक प्रदर्शन दे रहा था ,हाँ यह बात दूसरी है कि उसका कन्ठ्लन्गोट उसकी मेज पर मायूस पड़ा उसे देख रहा था.
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1 comment:
Nice
by reading your kathan for a moment i saw my self freaze really nice
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