Wednesday, January 21, 2009

बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है

आज फिर बाबा की गोदी चढ़ने का मन करता है ,
तक जाती हूँ दिन-भर की दौड़-भाग से, घूरती आखों,
बेमतलब कटाक्षों से ,
शाम को घर पहुँचती हूँ तो , एक चूल्हा इंतजार करता है ,
मेरे पहुँचने से पहले , मेरे उपहास को तैयार करता है ,
सबको खुश करने में अपनी खुशी पता नही कहाँ खो गयी है ,
जागते - जागते, बच्चों का होमवर्क करवाने में मेरी नींद कहीं सो गयी है ,

बस अब नही सहा जाता ये ज़िम्मेदारियों का भंवर ,
बाबा तुम्हारी बिटिया अब तक गयी है ,
एक बार आ जाओ , छुपा लो अपनी गुड़िया को मजबूत हाथों में ,
ताकि तुम्हारी हथेलियों के बीच से में चिढ़ा सकूँ सब दुनिया को ,
बता सकूँ कि में भी किसी की लाडली हूँ ,

अगर तुम पास हो तो परवाह नही कि कौन जीता है कौन मरता है ,
बस बाबा, एक बार फिर तुम्हारी गोदी चढ़ने का मन करता है .

2 comments:

Dew drops said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

Great writeup...conveys a very deep yet innocent truth so well...