Tuesday, September 30, 2008

गरम खून

आज फिर गुजरात में तीन धमाके हुए और तेईस लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा | हर एक चॅनेल घुमा फिरा कर बार-बार यही खबर दिखा रहा था | आशीष अभी-अभी दफ़्तर से थका हारा घर लौटा था और सोफे पर बैठकर अपने जूतों के फीते खोल रहा था | पता नही इस देश का क्या होगा , चाय लाते हुए शिप्रा बोली | देखो ना अब गुजरात मैं धमाके हो गये ,पता नही आगे क्या होगा , शुक्र है की अभी तक हमारा शहर आतंकवाद की आग से बचा हुआ है | आशीष अब तक पूरी खबर छान चुका था , टीवी पर किसी बच्चे के बारे में बता रहे थे जिसका सारा परिवार धमाके की भेंट चढ़ गया था |

सब कुछ देख कर आशीष का खून खौल रहा था , शिप्रा इन लोगों को तो खुले आम फाँसी दे देनी चाहिए | देखो पता नही छोटे-छोटे बच्चों पर भी दया नही आती इन्हे | इतनी देर में आशीष के दोस्त सुनील का फोन आया ,वो भी इन धमाकों से बहुत नाराज़ था | आशीष और सुनील अक्सर आतंकवाद और अन्य सामाजिक विषयों पर चर्चा किया करते थे | अब तो हमें ही कुछ ना कुछ करना पड़ेगा याद है कॉलेज के दिनों में हम ग़लत बात के विरोध में सबसे लड़ जाते थे पता नही हमें अब क्या हो गया है | शिप्रा भी उन दोनो की बात सुन रही थी और अपने पति के कॉलेज के दिनो की कल्पना कर रही थी |

दोनो की काफ़ी देर तक फोन पर ही चर्चा चलती रही , बीच - बीच में शिप्रा टीवी के चॅनेल बदलती तो आशीष का गुस्सा और भी बढ़ जाता | अब तक कुछ नेता बयान देना भी शुरू कर चुके थे और अलग -अलग पार्टियाँ , अलग-अलग पार्टियों को धमाके का कारण बता रही थी | सुनील सबसे पहले तो हमे इन नेताओं का ही कुछ करना चाहिए , इन्होने ही देश को बर्बाद कर दिया है , अब क्या है एक कमेटी बना देंगे और हो गया काम , सही कह रहे हो आशीष | खैर चलो कल मिलते है तब बात करते हैं , अब कुछ तो करना ही पड़ेगा |

अगले दिन समाचार मिला कि पोलीस ने कुछ आतंवादियों को मार गिराया और उसमे पोलीस के भी कुछ जवान शहीद हो गये | शाम को आशीष क़ी कॉलोनी वालों ने शहीदों को श्रधांजलि देने कि लिए एक मौन सभा रखी थी पर आशीष नही दिखाई दे रहा था | पता किया तो मालूम चला कि वो और सुनील अपने ऑफीस के लोगों के साथ कोई पिक्चर देखने गये हुए थे |

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