हर इंसान जीवन में कुछ न कुछ पाना चाहता है या ये कहिये की कुछ ना कुछ अलग करना चाहता है ऐसी ही किसी इच्छा के वशीभूत होकर सत्यव्रत ने प्रण किया कि वो एक दिन उच्च शिक्षा के लिए सागर के पार जाएगा उसका सपना था कि वो अपनी नियति को बदल देगा ,वो अपनी बीमार माँ के लिए भरपेट खाना और बाबा के लिए एक साइकिल लेना चाहता था सत्यव्रत के बाबा ने जीवन भर पैदल चलकर उसकी पढ़ाई के लिए धन जुटाया था,समय बीतता गया और सत्यव्रत का निश्चय और भी ढ्रद होता गया , उसने दिन रात मैं फर्क किए बिना पढ़ाई की और एक दिन उसके सपने पूरे हो गए, उसका दाखिला अमेरिका के एक अच्छे कालिज में हो गया ! उसके सपनो के लिए बाबा ने घर को भी गिरवी रख दिया
आज इस बात को वर्षो बीत चुके हैं सत्यव्रत अब एक बड़ी बैंक में अधिकारी है ,लोग कहते है कि उसके बच्चे बहुत सुंदर हैं शायद उसकी बीबी से भी ज्यादा , हाँ उसकी माँ के बारे मैं सुना कि तीन साल पहले उन्होने सिविल अस्पताल में दम तोड़ दिया ,सत्यव्रत उस समय यूरोप में कहीं था और हाँ उसके बाबा आज भी नौकरी कर रहे हैं कहते हैं कि वो अपने घर को महाजन से वापिस लेना चाहते हैं ताकि जब उनके नाती आयें तो उन्हें शर्मिंदा ना होना पड़े
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2 comments:
No doubt the story is very "marmik" and touches the heart. Kudos to the writer who could pen down a story which many of us see in this-or-that way.
Jindgi me kabhi kabhi hum bahut upar to chale jaate hain par unko jhuk ke dekhna nahi chahte jinke kandho pe chadkar hun upar gaye..
Well done Vinay!!
It's really a gud story which touches the life.
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