Thursday, September 25, 2008

मास्टर जी

तड़ - तड़ , गीली नीम की हरी डंडी मेरे हाथ पर पड़ी और में दर्द और कराह उठा आज एक बार फ़िर में अपना पाठ याद करके नही आया था और मास्टरजी मेरी सेवा कर रहे थे पता नही नियति ने किस पाप का बदला लेने के लिए उन्हें हमारे विधालय में भेज दिया था , वे हमेशा कहते थे कि अगर में ऐसे ही पढ़ाई से जी चुराता रहा तो एक दिन किसी दुकान पर पंचर जोड़ना पड़ेगा और में हमेशा घर के रास्ते में पड़ने वाली पंचर की दुकान को देखकर अपना भविष्य चित्रित किया करता था हमारी शरारती टोली हमेशा उन्हें परेशान करने के नये -नए तरीके ढूँढती रहती थी , कभी हम उनकी ऐनक छुपा देते तो कभी उनकी कुर्सी पर गोंद फैला देते, पर वे भी किसी हठी बालक की तरह जमे रहे और उनके अनुशाशन के डंडे से हमारी चटक भावनाओं का दमन होता रहा भूगोल और विज्ञानं के पाठों के बीच घूमते -घूमते मेरा बचपन घुमावदार पहाडी पर चलती किसी ट्रेन की तरह कब बीत गया पता ही नही चला और एक दिन मैंने अपने विधालय से विदा ली उस दिन मैंने पहली बार मास्टरजी को हम पर गुस्सा होते नही देखा वे आज शांत थे जैसे कोई नाविक, नाव को किनारे पर लगा जाते हुए मुसाफिरों को देख रहा हो

समय अपनी चाल से चलता रहा और धीरे - धीरे कई साल बीत गए और हम सब लोग अपनी - अपनी राह में व्यस्त होते गए कंप्यूटर और रोकेट की दुनिया में अब गावों के स्कूल की यादें कहीं धूमिल हो गई मैंने दुनिया में बहुत नाम कमाया एक प्रसिद्ध लेखक बनकर में अमेरिका में बस गया , अमेरिका सपनो का देश था और में अपने सपनो में खो गया हमारे कई दोस्त भारत में ही रह रहे थे और वहां के समाचार मिलते रहते थे पर कभी भी मास्टर जी की कोई सूचना नही मिली या यों कहिये ,कभी ध्यान ही नही आया

नवंबर मे राकेश क़ी चिट्ठी आई , वो भी हमारे बचपन का साथी था उसके बेटे क़ी शादी तय हो गयी थी और सयोंग से बारात भी हमारे गावों मे जाने वाली थी इतने सालों बाद आज मुझे एक अजीब से आनंद क़ी अनुभूति हो रही थी राकेश के बेटे क़ी शादी के रूप में भाग्य ने मुझे एक सुअवसर दिया था अपने बचपन से मिलने का हालाँकि उसी समय मैं ,मुझे कुछ विद्वानों से मिलने यूरोप जाना था पर मास्टर जी से मिलने की मिलने क़ी ललक सब पर भारी पड़ी मैंने अपनी पत्नी को समझाया और दो दिन बाद हम लोग भारत क़ी उड़ान पर थे

तय समय पर हम गावों मैं पहुँच गये,बारात का जोरदार स्वागत हुआ और राकेश भी खुश था क़ी मेरे जैसा जाना माना व्यक्ति उस के बेटे क़ी शादी मे आया , पर मेरी आखें भीड़ मैं मास्टर जी को खोज रही थी, पता नही तीस साल बाद वे कैसे दिखाई देते होंगे , पता नही अब भी गुस्सा करते होंगे या नही , अनगिनत सवाल मेरे दिमाग़ में गूँज रहे थे तभी एक छोटे बच्चे ने आकर मुझसे पूछा क्या आप ही विनय काका हो , जब मैने हाँ में सिर हिलाया तो उसने पर्दे के पीछे खड़े एक बुजुर्ग को आने का इशारा किया वो मास्टर जी ही थे शायद उन्हे शादी मैं नही बुलाया गया था

तुम अब बहुत बड़े हो गये हो , तुम्हारे बारे में बहुत सुनता रहता था तुम गावों आए हो पता चला तो खुद को रोक नही पाया और मिलने चला आया मेरा पोता तुम्हे बहुत मानता है ,वे कहते हुए मेरी तरफ आ रहे थे पर मैं वहाँ पर नही था मैं तो उनके चरणों को अपने आंसूओं से धो रहा था

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