Tuesday, September 9, 2008

माली का बेटा

गर्मी की भयावता बढती जा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सूरज अपने ताप से पूरी धरती को निगल जाना चाहता हो एसे में चिंटू और उसके बाबा हमारे बाग़ की क्यारियों की गुडाई कर पानी देने में लगे हुए थे पसीने से तरबतर उनके शरीर को देखकर लगता था जैसे उनका शरीर भी फोव्वारे के साथ उनके काम में हाथ बटाना चाहता हो में अपने एसी कमरे की खिड़की से उन्हें काम करते देख रहा था
माँ ने बताया था कि निर्मल काका की बेटी कि शादी होने वाली है इसलिए वे आजकल ज्यादा से ज्यादा काम करके पैसा बनाना चाहते हैं और इसलिए चिंटू भी उनके साथ आता है हमे इस कालोनी मे आए ज्यादा समय नही हुआ था , निर्मल काका कई साल से सामने वाले शर्मा जी कि कोठी में काम कर रहे थे उन्होने ही काका को हमारे यहाँ भेजा था काका अक्सर बात करते हुए कहते थे कि वो शर्माजी के यहाँ अपनी तनखाह जमा करवाते आ रहे थे ताकि इकठ्ठा पैसा शादी में काम आ सके गर्मी अपने चरम पर पहुँच गई और वो जुर्रिदार हाथ तन्मयता से अपना काम करते रहे
आज दस दिन हो गए है निर्मल काका का कुछ पता नही ,मेनें उन्हें सामने वाले घर में भी आते हुए नही देखा ,जिज्ञासा वश जब माँ से पूछा तो पता चला कि उन्हे लू लग गई थी और चार- पाँच दिन पहले उन्होंने दम तोड़ दिया और चिंटू अब जेल मैं हैं ,दरसल उस माली के बेटी ने अपनी हद पार कर दी ,जब शर्मा अंकल ने काका के किसी भी पैसे का उनके पास होने से इनकार कर दिया ,उसने पत्थर उठा लिया ...और ............

1 comment:

Vimal Pradhan said...

An innovative story. These few words tell a story of hundred pages. Writer has pointed out a very real and practical problem of our socirty.