आज चार दिन हो गये ,बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी | कुन्नू ने बाहर से आकर अपना छाता खूँटी पर तंग दिया , वो पूरा भींगा हुआ था ,उसकी फटी हुई नेकर और शर्ट पानी से तरबतर थी | बाबा का कुछ पता नही चला माई,वो कमरे में अंदर घुसते हुए बोला | कुन्नू के बाबा गावों के सरपंच थे और गावों के कुछ लोगों के साथ दो दिन पहले कोसी के तटबंध जाँचने गये थे पर तब से उनका कोई सुराग नही था | दूसरी ओर कुन्नू की माँ , कुन्नू और उसके तीन छोटे भाई
बहनो के साथ बारिश की भयवता के बीच उनका इंतजार कर रही थी |
वैसे साल के इस समय यहाँ बारिश होना नयी बात नही थी पर इस बार बारिश ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए , लगातार बारिश से नदी का जल स्तर बढ़ता जा रहा था और तटबंधों की ख़तरा उत्पन्न हो गया | किसी ने बरुआ के खेत के पास तटबंध में दरार आने की सूचना दी और कुन्नू के बाबा ,गावों के कुछ कुशल कारीगरों को लेकर उस तरफ निकल गये |
शाम तक सब लोग वापिस आ गये , पर कुन्नू के बाबा और चार लोगों का कुछ पता नही चल रहा था |
कुन्नू के माँ एक सीधी- साधी महिला थी , उसे बस इतना याद रहा कि एक बार पति ने कहा था कि अगर कभी बिछड़ गया तो घर पर ही आऊंगा और वो इसी भरोसे अपने पति का इंतजार कर रही थी | बारिश का पानी अब घर क़ी देहरी तक पहुँच चुका था उसके छोटे-छोटे बच्चे उससे चिपके, खाट पर सोए पड़े हुए थे | धमाक , एक ज़ोर क़ी आवाज़ हुई और कुन्नू भागता हुआ अंदर आया , माँ नीम का पेड़ गिर गया , सारे बिजली के तार भी टूट गये | उसने एक करवट अपने बच्चों क़ी तरफ देखा और कुन्नू से बोली , जा जाकर मुन्नी को बोल क़ी माँ बुला रही है , जल्दी आए |
मुन्नी उनके पड़ोस में रहने वाली एक विधवा महिला थी जिसका पति पिछले साल की बाढ़ में स्वाह हो गया था , कुन्नू भागा भागा गया और मुन्नी को बुला लाया , अब दोनो औरतें जानती थी की उन्हे क्या करना था , कोसी के तट बँधी सभी गावों वालों को पता था क्या करना है , रात भयावाह थी पर अब वो दो थी.
कुन्नू की माँ अब एक ही रात में सीधी-साधी गवाँर महिला से समझदार हो चुकी थी , उसे पता था कि वहाँ रुकना या कुन्नू के बाबा का इंतजार करना अब सम्भब नही था , उसे फ़ैसला लेना था , कुछ देर बाद दौनो महिलाएँ एक खाट के दो पाओं को सर पर रखे और अपने बच्चों को उस पर बिठाए आधी कमर तक के पानी में निकल पड़ी , बाहर बोहोट तेज बिजली चमक रही थी पर उनके चेहरे पर चमक थी ऐसा प्रतीत हुआ मानो आसमान भी अभिमान को चूम रहा हो |
उन दो गवाँर महिलाओं को जो ठीक लगा उन्होने किया , अगले दिन का नज़ारा वही पुराना तमाशा था , नेता आ रहे थे - नेता जा रहे थे , कोई हैली-कॉपटेर से जायज़ा ले रहा था और कोई कॅमरा लेकर अपनी रोज़ी रोटी की कहानी ढूँढ रहा था..हाँ इन सब से डोर वो दौनो अपनी खाट पर सोते बच्चों को देख रही थी और उनकी शांत आँखों में एक वाक्य छापा था "कि हम अगली साल के लिए भी तैयार हैं"
कोसी का सच सब जानते है , फिर बोलने से क्या डरना :)
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