Wednesday, September 17, 2008

चर्चा का विषय

मुंबई की खार ड्राइव पर एक बड़ी कार आकर रुकी और पीछे की गेट से एक गंभीर सा दिखने वाला नौजवान निकल कर बाहर आया उसके पहनावे से वो किसी बड़ी कंपनी का अधिकारी दिखाई देता था चमचमाता सूट , पोलिश जूते और आखों पर महँगी ब्रांड का काला चश्मा , वो अनायास ही सब लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया | वैसे इस इलाक़े में कई बड़ी कंपनियों के दफ़्तर थे पर कम ही लोग इस तरफ आना पसंद करते थे , ऐसे में उसका आना ,स्वाभाविक कौतुहल का विषय था |

हमारे देश में सबसे ज़्यादा सुलभ नज़ारा बिना ज़रूरत के जमा भीड़ का होता है और कुछ देर बाद यही नज़ारा यहाँ भी सुलभ था | लोगों मे चर्चा शुरू हो गयी ,लगता है की पत्नी से लड़ के आया है ,एक बड़े बुजुर्ग ने कहा , नहीं- नहीं अभी शादी कहाँ हुई होगी किसी ने बीच मे टोका |दूसरी ओर कुछ लड़कियाँ बात कर रही थी ,अभी शादी नही हुई होगी एक ने दूसरी की कोहनी पर हाथ मार के कहा , पता नही इन लड़कों को तो मंगलसूत्र भी नही पहनना पड़ता , और एक हँसी की लहर दौड़ गयी | दूर एक कोने में कुछ उत्साही नौजवान उसकी कार की तारीफ कर रहे थे , कितना मज़ा आता होगा न इसमे,कितना खुश रहता होगा ये आदमी ! हाँ यार सबकी एसी क़िस्स्मत कहाँ ?

तभी किसी विद्वान व्यक्ति ने अपना तर्क रखा , कहीं ये यहाँ कोई बिल्डिंग तो नही बनाना चाहता , जिस तरह ये सामने मैदान को देख रहा है , लगता है मंशा सही नही है अब भीड़ की आखों मे थोड़ा रोष दिखाई दे रहा था , जहाँ अभी तक उस नौजवान को सम्मान की नज़र से देखा जा रहा था वहीं अब वो एक खलनायक बन चुका था पर भीड़ में किसी की भी हिम्मत ना हुई की उससे बात कर सके |

इन सब चर्चाओं से दूर वो नौजवान एकटक मैदान की तरफ देख रहा था , उसकी आखों मे एक अजीब सी बेकरारी दिख रही थी करीब आधे घंटे बाद एक कार और वहाँ आकर रुकी और ये नौजवान तेज कदमों से उसकी तरफ बड़ा , अब तक भीड़ का शक भी यकीन मे बदल चुका था | यार कितनी देर कर दी तुमने , सामान लाए हो या नही , इस नौजवान अपने जैसे ही एक दूसरे युवक से नाराज़ होते हुए पूछा |

कुछ देर बाद कोट , जूते सब गाड़ी मे पड़े हुए थे और दोनों अपनी पतलूनों को घुटने तक मोड़ कर अपने बचपन के मैदान मे पतंग उड़ा रहे थे |

1 comment:

Eternal Wanderer said...

The ending was totally unexpected....Keep it up..