Sunday, July 22, 2012

पापा जैसा बनना है



जब भी मैं अब मैदान में खेलते - कूदते बच्चों को देखता हूँ ,
तो अतीत के झरोखे से एक चित्र सा उभर आता है,
जिसमे मेरी नटखट उंगली थामे खड़ा एक साया खूब मन भाता है.
वो बरगद हैं मेरे , जिनकी छाया में मैने निडर अपना बचपन ज़िया.
गिरा कभी , और फिर सीखा संभलना , और हर पल उन्होने मेरा साथ दिया.
वो मेरे पापा हैं..... :)
छोटे-छोटे रेत के किले बनाते मेरे मासूम हाथों को हमेशा उनका हाथ मिला.
जब भी गिरा निराश हुआ , तो उनके शब्दों का साथ मिला.
वो कहते थे जब गिरोगे  - धूल झाढोगे , तभी खड़े होना सीख पाओगे.
एक दिन घूमोगे सारी दुनिया , अपनी खुद की एक पहचान बनाओगे.
और फिर एक दिन साइकिल चलाते - चलाते , मैने उस खूबसूरत एहसास को जिया...
जब पलटकर पता चला की पापा ने मुस्कुराते हुए साइकिल के करियर को छोड़ दिया.. :)
अभी तो चलना है चलना है और चलना है ....
पर जब ज़िम्मेदारी मेरी होगी तो पापा जैसा बनना है ..





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