Monday, April 16, 2012

शांत तालाब

घर से निकल कर उन राहों में अब हम निकल पड़े हैं.....जहाँ
मोड़ बहुत हैं , तोड़ बहुत हैं ......उबर - खाबर रास्ते हैं ..
धूप हैं - छाँव हैं ...और दूर..किसी शांत तालाब के तीरे एक गावों हैं..

मुझे तो बस उस तालाब मैं अपना अक्स देखना है. :)

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