ध्वंस,विध्वंस की आवाज़ों के बीच
में अब जाग रहा हूँ |
अपनो के लहू से भींगी धरती को देख
नवभारत के सपने पाग रहा हूँ ||
आतंक की पराकाष्ठा दिखा ,
ये न समझो कि में डर जाऊँगा |
गोलियाँ , भाषण कितने भी दे लो ,
पर ये ना समझो कि में मर जाऊँगा ||
में जीऊँगा इस धरती पर,
जब तक एक भी पुष्प खिलेगा |
में जीऊँगा जब तक ,
एक भी शहीद अम्रत्व से मिलेगा ||
तुम चाहें जितनी भी कोशिश कर लो,
परिवर्तन अब नही रुकेगा |
बाँध लो जितने बाँध बाँधने हो ,
पर यह ज्वार तुमसे न थमेगा ||
मुझे अपना चैन वापिस चाहिए,
और मुझे पता है कि क्या करना है |
तुम अपना फ़ैसला करो ,
कि सुधारना है या सिधरना है ||
ज़य अखंड भारत
" एक भारतवासी"
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