Monday, February 16, 2009

खुशी की तलाश

शाम के धुँधलके में चलते - चलते , मेरे दिल में एक ख्याल आया |
सालों हो गये सफ़र शुरू किए हुए , शायद मै खुशी की तलाश मै बहुत दूर निकल आया |
मै आज भी अनवरत यात्रा कर रहा हूँ , पल-पल विचारों के ज्ञान से अपनी गागर भर रहा हूँ ,
पर क्यों मै खुश नही हो पाता ,क्यों कुछ भी कभी मेरे मन को नही भाता ?

जवाब जानने को बैठा मै सोच ही रहा था की अचानक एक हाथ ने मुझे छुआ,
वो एक भिखारी था जो खाने को दस रुपये माँग रहा था ,पूरी आशा और खुशी से मुझे ताक रहा था |
उसके चेहरे का उल्लास देख मै समझ ना पाया, की क्या ये खुश है ,या खुशी दिखा रहा है |
मन सम्भल न पाया तो मैने उससे उसकी खुशी का राज पूछ ही लिया ,
वो बोला बाबूजी मै खुश हूँ क्यों की आप के पास पैसा है , अब मेरा काम चल जाएगा,
ये भिखारी आज तो कम से कम भर पेट खाना खाएगा |

अब मेरी समझ मै आ गया था की फ़र्क सिर्फ़ सोच का ही है ,
में खुश नही रहता क्यों की मेरे पास होटेल मै खाने के पैसे नही है
और ये खुश है की इसके पास सिर्फ़ खाने के पैसे है !
में खुश नही हो पाता की मै किराए के घर मै रहता हूँ और यह खुश है की सोने को फुटपाथ तो है ,
मैं खुश नही की मेरा कोई दोस्त नही है , और यह खुश है क्यों की ये सबका दोस्त है ,
मैं खुश नही क्यों की मै सम्मान चाहता हूँ , और यह खुश है क्यों की ये गुमनामी चाहता है ,

शायद मुझे मेरे जवाब मिल गया , तलाश पूरी हो गयी आज इस मोड़ पर ,
अब वक्त आया है जब खोज के बारे मै औरों को बताना है , भाई खुशी तो आपके अंदर है बस दरवाजा खटखटाना है :)

1 comment:

Aashayein said...
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